गुरु ईश्वर का रूप हैं | Guru is the form of God. | गुरु महिमा |
मानव बहुत भटक चुका है, भटक रहा है और ये तबतक भटकता रहेगा, जबतक किसी ज्ञानी गुरु, सत्पुरूषों से मिलकर, उनसे सद्युक्ति प्राप्त कर अपने आत्मस्वरूप की पहचान कर सत्वस्वरूप की पहचान नहीं कर लेता।
वर्षा प्रायः होती है, किन्तु स्वाति की बूँद कभी-कभी गिरती है। उसी संसार में लोग जन्म लेते रहते हैं और लेते रहेंगे; लेकिन संत महापुरूषों का जन्म कभी-कभी, कहीं-कहीं होता है।
सामान्य जल वर्षा होने से खेती लहलहाती है, किन्तु स्वाती बूंद तो मोती ही बनाती है। उसी तरह सामान्यजन के जन्म लेने जनसँख्या बढ़ती हैं और संत महापुरुष अवतार लेकर वे हीरा-मोती की खेती करते और कराते हैं।
संत कबीर साहब ने भी खेती की: सतनाम की; 'मन का बैल और सुरत का हरवाहा'। उन्होंने सत्तनाम का बीज बोकर हीरा-मोती उपजाया और मालामाल हो गए।
हमरे सत्तनाम धन खेती।।
मन के बैल सूरत हरवाहा, जब चाहै तब जोती।
सत्तनाम का बीज बोवाया, उपजै हीरा मोती।।
उन खेतन में नफा बहुत है, संतन लूटा सेंती।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, उलटी पलटी नर जोती।।
याद रखें, संत सद्गुरु कोई वेश-विशेष के कारण नहीं होते; गुरु नाम है ज्ञान का। शब्द का दाव बतलाने वाले आध्यात्मिक गुरु होते हैं और लौकिक गुरु वे होते हैं जो लौकिक विद्या सिखलाते हैं, जिससे हम संसार में आराम से खाये, पिये और रहें। लेकिन शरीर छूटने के बाद का जीवन सुखमय कोसे होगा? इसके लिए आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता है।
सच्चे संत सद्गुरु कल्पवृक्ष होते हैं। उनके पास श्रद्धावन्त होकर जाने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है; अगर आपकी कामना- शुभकामना है, शुभेच्छा है, तो वे उनकी पूर्ति कर देंगे।
No comments:
Post a Comment