ब्रह्म-दर्शनार्थ तीनों पर्दों को पार करना आवश्यक! भाग-3
हमलोग पुष्प को देखते हैं, परन्तु उसमें व्यापक गंध को नहीं। उसी तरह हम विश्व को देखते हैं, किन्तु विश्व में व्यापक ब्रह्म को नहीं देख पाते।
जितनी विद्याएँ हैं, जितने शास्त्र हैं, सभी जूठे हो गए हैं; क्योंकि उसका वर्णन लोग मुँह से करते हैं, परन्तु जो अनंत स्वरूप परमात्मा है, उसका ज्ञान कभी जूठा नहीं होता।
उस अव्यक्त तत्व को अव्यक्त ही जान सकता है। जैसे हमारी चौदह इंद्रियों में रूप विषय को आँख ही ग्रहण कर सकती है, शब्द को कान ही ग्रहण कर सकता है; उसी तरह परब्रह्म परमात्मा का ज्ञान हमारी चेतन आत्मा ही ग्रहण कर सकती है।
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