बच्चे जो अनजान होते हैं, तितलियों के पीछे भागते हैं, बड़े लोग इसे देखकर बच्चे को अज्ञानी समझते हैं। हम भी उस बच्चे से कम अज्ञानी नहीं हैं। वह तो तितलियों के पीछे भागता है, जिनमें जान हैं और हम जिनके पीछे भागते हैं, वे सभी- घर, जमीन, दूकान, पैसा आदि जो बेजान हैं।
महर्षि मेँहीँ-पदावली में गुरुदेव (महर्षि मेँहीँ) का वचन है-
कोई न स्थिर सबहिं बटोही।
सत्य शांति एक स्थिर वोही।।
जैसे तितलियों के पीछे भागनेवाले बच्चे को देखकर हम हँसते हैं, उसी तरह संत-महात्मागण संसारी लोगों को देखकर हँसते हैं, जो ज्ञानाभाव के कारण भोगों में मस्त हैं।
जो गुरुभक्त होने का दम्भ रखते हैं, पर उनकी आज्ञा का पालन नहीं करते हैं, तो गुरु की कृपा कितनी भी बरसती रहे, पर सफलता नहीं मिलेगी।
गुरु-कृपा की धारा तो बह रही है, जिसके अन्दर जितनी क्षमता होती है, पात्रता होती है, उतनी कृपा मिलती है। जिनका हृदय जैसा रहेगा, वैसा ही गुरु की कृपा का प्रकाश फैलेगा। इसलिए गुरु में श्रद्धा रखनी चाहिए और उनकी आज्ञा का पालन करनी चाहिए। जो अपने इष्ट पर एकनिष्ठ रहते हैं, उनका कभी अनिष्ट नहीं होता है।
याद रखें अन्तर्मार्ग के पथिकों के लिए अहंकार बहुत बड़ा-भारी दुश्मन है। व्यक्ति के अन्दर अनके तरह के मद्द होते हैं, जबतक इन मद्दों को रद्द नहीं करेंगे, तबतक अनहद नहीं मिलेगा और प्रभु का दर्शन नहीं होगा। अतः अहंकार रहित बनें, हृदय को पवित्र व पाक रखें, मन साफ रखें, गुरु युक्ति से भक्ति करें तो सफलता मिलेगी और प्रभु का दर्शन होगा।
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