संसार में रहने की कला!
वह आन्तरिक मार्ग पर चल नहीं सकता!!
सभी मानव एक है।
मानव में एकता होनी चाहिए।
इसके इसके लिए देश में आध्यात्मिकता ऊँची और उत्तम होनी चाहिए, सदाचारिता ऊँची और उत्तम होनी चाहिए।
सामाजिक नीति अच्छी होनी चाहिए। तभी राजनीति भी अच्छी होगी और शान्तिदायक होगी।
अध्यात्म ज्ञान से ही हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।
एक बाल के नोक के बराबर भी अगर किसी में पाप की वृति रहेगी, तो वह आन्तरिक मार्ग पर चल नहीं सकता।
साधक का जीवन पवित्र होना चाहिए। पवित्र जीवन जियें, साधन-भजन करें तो कल्याण होगा।
एक नायिका कहती है-
दस्त से मैं यार को खाना खिलाती हूँ।
प्यास लगने पर उसे पेशाब देती हूँ।।
यहाँ भाषान्तर से अर्थान्तर है; इसे समझना होगा।
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