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एक ईश्वर ही सत्य है | अपनी दुर्गति से बचें | सद्गति प्राप्त करें | इसी जीवन में |

कोई भी लौटकर नहीं आया !

ईश्वर एक है, अनेक नहीं। यह संसार उन्हीं का बनाया हुआ है। हमसब मानव जो यहाँ पर जाति-धर्म, सम्प्रदाय में बंटे हुए हैं, ऊंच-नीच के भेद-भाव से पीड़ित हैं, उन्हीं के संतान हैं। हमसब को एक -न -एक दिन उन्हीं के पास जाना है। हमारे पूर्वज सब -के-सब जा चुके हैं। उनका क्या समाचार है? वे किस हालत में हैं? किस परिस्थित में है? वे किस तरह रह रहें हैं? हमें कुछ भी मालूम नहीं है। वे सब -के -सब यहाँ इस संसार में जब थे तो बहुत कुछ धन-सम्पत्ति इकठ्ठा किए थे, रिश्ते-नाते बनाए, परन्तु सब कुछ यहीं पर छोड़कर चले गए, कुछ भी साथ में लेकर नहीं गए। 
हमसब के असली पिता एक ही है  "परमपिता परमेश्वर"। हमसबको भी एक- न- एक दिन अपने पिता के पास जाना ही है। लेकिन जाकर भी हम उनसे तभी मिल पायेंगे, जब हम उनकी भक्ति इस जीवन में करेंगे, जिस जीवनको हम अभी जी रहे हैं, यही अवसर हमारे पास है। और ये काम मनुष्य-शरीर में ही हो सकता है। भक्ति करने से ही ईश्वर-दर्शन होगा; अन्यथा परमपिता के दर्शन भी नहीं हो पायेंगे। 
अतः बहुत जरूरी है कि हम इस जीवन, जो जीवन हमें अभी मिला हुआ है, अच्छे-अच्छे कर्म करें, भक्ति करें और अपने पिता से जा आनन्द से मिलें, ऐसा करने से हमसब अपने दुर्गति से बच सकते हैं। और सद्गति को प्राप्त कर पायेंगे। यही जीवन का सार है। मानव-जीवन का उद्देश्य है। यही हमारी असली कमाई है। यही हमारे साथ भी जायेगा। इसी से परम पिता खुश होकर हमें अपने हृदय में समाहित कर लेगें। फिर कभी न नाश होने वाले अचल अमर सुख की प्राप्ति हो जायेगी।  क्रमशः...

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