कोई भी लौटकर नहीं आया !
हमसब के असली पिता एक ही है "परमपिता परमेश्वर"। हमसबको भी एक- न- एक दिन अपने पिता के पास जाना ही है। लेकिन जाकर भी हम उनसे तभी मिल पायेंगे, जब हम उनकी भक्ति इस जीवन में करेंगे, जिस जीवनको हम अभी जी रहे हैं, यही अवसर हमारे पास है। और ये काम मनुष्य-शरीर में ही हो सकता है। भक्ति करने से ही ईश्वर-दर्शन होगा; अन्यथा परमपिता के दर्शन भी नहीं हो पायेंगे।
अतः बहुत जरूरी है कि हम इस जीवन, जो जीवन हमें अभी मिला हुआ है, अच्छे-अच्छे कर्म करें, भक्ति करें और अपने पिता से जा आनन्द से मिलें, ऐसा करने से हमसब अपने दुर्गति से बच सकते हैं। और सद्गति को प्राप्त कर पायेंगे। यही जीवन का सार है। मानव-जीवन का उद्देश्य है। यही हमारी असली कमाई है। यही हमारे साथ भी जायेगा। इसी से परम पिता खुश होकर हमें अपने हृदय में समाहित कर लेगें। फिर कभी न नाश होने वाले अचल अमर सुख की प्राप्ति हो जायेगी। क्रमशः...
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