'सत्संग-योग' मेरा प्रतिनिधित्व करेगा |
ईश्वर एक है और ईश्वर तक पहुँचने के मार्ग भी एक ही है। संसार के सभी तनधारि मनुष्य भक्ति कर सकते हैं। चाहे वे किसी भी देश के हों, किसी भी भेष के हों, किसी भी जाति-धर्म, मजहब, संप्रदाय के हों। भक्ति करने के लिए घरवार, परिवार, रोजगार आदि छोड़ने की भी जरूरत नहीं होती है। अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए भगवद्भजन कर सकते हैं।
संसार के सभी संतों ने साधना-तपस्या करके देख ली और तब उन्हौंने निष्कर्ष निकाला कि भक्ति करने के एकमात्र सरल साधन- विन्दु-ध्यान और नाद ध्यान है।
वेद कहता है- 'नानयः पंथा:।' न अन्यः पंथा: अर्थात कोई दूसरा रास्ता नहीं है। 'तपसः परस्तात्' अर्थात अंधकार के परे प्रकाश में चलो और शब्द को पाओ। यही खुदा या परमात्मा के पास जाने का रास्ता है, अन्य दूसरा रास्ता नहीं है। ईश्वर-कृत जो रास्ते हैं, उनमें परिवर्तन नहीं होता है पर मानव कृत रास्ते बदलते रहते हैं।
जिस तरह ईश्वर रचित संसार और संसार के सभी मनुष्यों के लिए ईश्वर प्रदत्त शरीर में जो रास्ते जिस काम के लिए है, वही काम होता है, उनमें परिवर्तन नहीं होता है- कान से सुनने का, आँख से देखने का इत्यादि...।
उसी तरह ईश्वर के पास जाने का रास्ता भी एक ही है और वह अंदर का रास्ता है।
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