ब्रह्म-दर्शनार्थ तीनों पर्दों को पार करना आवश्यक | भाग-1|
यदि पृथ्वीतल से मिट्टी का एक ढेला लेकर हम आकाश की ऊँचाई में ले जाकर छोड़ दें, तो वह आकाश में तबतक चक्कर काटता रहेगा जबतक वह पुनः पृथ्वी से आकर मिल नहीं जाता।
अंश जब तक अपने अंशी में मिल नहीं जाता, स्थिरता नहीं आती है।
यह जीव भी अपने अंशी से भी बिछुड़ जाने के कारण अशांत, बेचैन बना हुआ है।
यह तब तक शांति प्राप्त नहीं कर सकता, जबतक कि जहाँ से इसकी उत्पत्ति हुई है, वहाँ नहीं पहुँच जाए।
वहाँ पहुँचने के लिए रास्ता अपने अंदर है, कहीं बाहर में भटकने की जरूरत नहीं। इसके लिए
पहले आज्ञाचक्र से सहस्रदल कमल में जाओ, वहाँ से त्रिकुटि, शून्य, महाशून्य और भँवर गुफा होते हुए सतलोक में पहुँच जाओगे। वहाँ प्रभु का दर्शन हो जाएगा।
इसके लिए पहले समय खर्च करना होगा, साधन-भजन करना होगा। पहले मानस-जप और मानस-ध्यान लगाना होगा; फिर दृष्टियोग की क्रिया करके एकविन्दुता प्राप्त करना होगा। वह विन्दु तुम्हें प्रकाश में पहुँचा देगा। वहाँ जो शब्द मिलेगा, उस केन्द्रीय शब्द को पकड़कर तुम प्रभु के पास निःशब्द में पहुँच जाओगे।
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