एक माली फुलवारी में खिले-खिले फूलों को तोड़ रहा था।
फूलों को तोड़ते देखकर कलियाँ चीत्कार कर रो उठी; तो माली ने पूछा- 'मुकुले'! मैं खिले हुए फूलों को तोड़ रहा हूँ, तुमलोगों को तो कुछ नहीं कर रहा हूँ, फिर दुखी होकर क्यों रो रही हो? कलियों ने उत्तर दिया- भाई माली! हमसब अभी के लिए नहीं भविष्य यानी कल के लिए रो रहे हैं। अभी हम मुकुल रूप में हैं कल फूल होकर खिलेंगे, तब माली भाई! तब तुम हमारी डाली खाली कर अपनी डाली। भर लोगे।
संत कबीर साहब की वाणी है-
"माली आवत देखकर, कलियाँ करै पुकार।
फूली-फूली चुनि लई, काल्ह हमारी बार।।"
वास्तव में संसार एक फुलवारी है। काल माली के रूप में जीव रूपी फूलों को तोड़ता है। गुरु नानक देव जी कहते हैं- मानव की लगायी फुलवारी में माली फूले हुए फूलों को ही तोड़ता है, किन्तु परमात्मा कृत संसार रूपी फुलवारी में निष्ठुर काल रूप माली बाल, यौवन, जरा (वृद्ध) कुछ नहीं देखता, सबका संहार करता है।
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