सभी मनुष्य स्वावलंबी जीवन बिताएं। पवित्र कमाई (अपने पसीने की कमाई) करें, उसी से जीवन निर्वाहन करें। सतोगुणी भोजन करें।
पिता की कमाई खानेवाले का खून खराब हो जाता है!
हमारा मन और अन्न दोनों पवित्र होना चाहिए। साथ ही हमारा तन, वचन और व्यवहार भी पवित्र होना चाहिए। इन सबके मूल में जो सबसे जरुरी है, हमारा हृदय तो पवित्र होना ही चाहिए।
हृदय पवित्र नहीं है तो अपने पिता (परम प्रभु परमेश्वर) की परछाईं की भी अनुभूति नहीं हो पायेगी।
संतोषी बनें। थोड़े में भी संतुष्ट रहें। मनोविकारों से दूर रहते हुए अपने हृदय में शील, संतोष, क्षमा, नम्रता, आदि उत्तम विचारों को, सात्विक विचारों को धारण करें।
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