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भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा- मैं अव्यक्त हूँ, पर जो अज्ञानी लोग है, मुझे व्यक्त मानते हैं|

भगवान का उत्तम रूप कौन है? भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा; मैं अव्यक्त हूँ, पर जो अज्ञानी लोग है, मुझे व्यक्त मानते हैं। वास्तव में जो मेरा अव्यय, अव्यक्त रूप है, वही उत्तम है। 
भगवान कहते हैं कि क्षर और अक्षर; ये दो पुरुष हैं। इन दोनों को के परे हैं- पुरुषोत्तम, वही मैं हूँ।

ब्रह्म-दर्शनार्थ तीनों पर्दों को पार करना आवश्यक! भाग-2


एक यात्री यात्रा के क्रम में एकबार जंगल चला गया। वहाँ उनकी भेंट एक महात्माजी से हुई। उसने महात्माजी से पूछा  'बाबा! बस्ती कितनी दूर पर दूरी पर है?' महात्मा जी ने उत्तर दिया- 'जैसे ही जंगल पार करोगे बस्ती मिल जाएगी।' चलते-चलते जब उसने जंगल को पार किया, तो उसको शमशान घाट मिला। वह लौटकर आता है और महात्मा जी से कहता है- 'बाबा! आपने तो कहा था कि जंगल पार करने पर बस्ती मिलेगी, पर वहाँ तो शमशान घाट मिला।' महात्मा जी ने उत्तर दिया- 'तुम किसको बस्ती कहते हो? बस्ती तो उसको कहते हैं, जहाँ आकर लोग बसते हैं। शमशान में जाकर जो बसते हैं, उसको कोई उजाड़ नहीं सकता है। असली बस्ती तो वही है, जहाँ बसने पर कोई उजाड़ न सके। तुम जिनको बस्ती करते हो, वह तो उजाड़ है। प्रतिदिन मर-मर कर लोग वहीं, श्मशानघाट में जाकर बसते हैं। इसलिए उसको मैंने बस्ती कहा।

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