Search

रामचरितमानस | नरतन में सुर दुर्लभता की क्या बात रही | आध्यात्मिक विचार


अब समझिए कि उस एक करोड़ के घोड़े की सेवा करने वाला भी मनुष्य ही होगा। कितने लोग भीख मांगते-फिरते हैं-- बाबू! एक पैसा दे दो। फिर नरतन में सुर-दुर्लभता की क्या बात रही? वास्तविक बात तो यह है कि एक करोड़ रुपए का घोड़ा हो या पचहत्तर हजार का कुत्ता, भगवद्-भजन करके भवसागर से छूट नहीं सकता, किंतु भीख मांगने वाला ही क्यों न हो, यदि उसे क्रिया बतला दी जाए, तो साधना करके वह त्रय तापों से, भवसागर के आवागमन से छूट सकता है।

नरतन में सुर दुर्लभता की क्या बात रही | भाग-2

सन्त साधना की पूरी अनुभूति का वर्णन रामचरितमानस में है। जो सर्वजनकल्याण के लिए है। इसमें लोक-व्यवहार के सदाचारपूर्ण नैतिक उपदेश का भी समावेशन है। इसका अध्ययन-मनन करके लोक-व्यवहार को सहित भक्ति को जाना जा सकता है और अपना लोक-परलोक को कल्याणमय बना सकते हैं। हर मानव की सार्थकता भी इसी में है। 


No comments:

Post a Comment

बहुत समय पड़ा है, यही वहम सबसे बड़ा है |

"बहुत समय पड़ा है, यही वहम सबसे बड़ा है।" यह ईश्वर भक्ति के लिए है।  क्योंकि आत्मा का जीवन अनन्त है। इस शरीर की आयु कु...