मनुष्य-शरीर की विशेषता क्या है?
गुरुनानकदेवजी कहते हैं--
"नहिं ऐसो जनम बारंबार।
का जान्यो कछु पुण्य परगट्यो, तेरो मानुषावतार।।
घटत छिन छिन बढ़त पल पल, जात न लागत बार।
वृक्ष ते फल टूटि पड़ि हैं, बहुरि न लागत डार।।"
जैसे वृक्ष से फल गिर जाए, तो कितना ही प्रयास करे, वह फिर उस डाल से जुड़ता नहीं। उसी तरह हमारे जीवन का जो अंश चला गया, वह जुड़ेगा नहीं। 'घटक छिन-छिन बढ़त पल-पल' का मतलब है कि पल-पल उम्र बढ़ रही है और छन छन आयु घट रही है। इस प्रकार उम्र बढ़ती जाती है आयु घटती जाती है। घटते-घटते एक दिन जीवन-लीला समाप्त हो जाती है।
इस शरीर-रूपी नाव के नाविक कौन?
भगवान राम कहते हैं-
"करनधार सद्गुर ढृढ़ नावा।
दुर्लभ साज सुलभ करि पावा।।"
शरीर-रूपी नाव के नाविक संत सद्गुरु हैं। हमें मनुष्य का शरीर मिल गया है। प्रभु की कृपा मिल गई है। खोजने से गुरु भी मिल जाते हैं। इतना होने पर भी यदि कोई भव-सागर पार नहीं होता है, तो वह कृत निंदक है, उसे आत्महत्या का पाप लगेगा।
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