आप सभी का 'Shivendra Kumar Mehta' ब्लॉग बेवसाइट पर स्वागत है। कबीर साहब का वचन है- "सुकिरत करि ले नाम सुमिरि ले को जानै कल की। जगत में खबर नहीं पल की।।" इसलिए 'शुभस्य शीध्रम' किजिए। जीवन में सुख-दुःख लगा ही रहता है, इसे प्रभु का प्रसाद मानें। अपना काम (जीविकोपार्जन कार्य), ईश्वर भक्ति और शुभ कर्म करते रहें। यहाँ पर आप जो कुछ भी पढेंगे और सुनेंगे उसे दूसरों के साथ शेयर किजिए। जय गुरु महाराज।🙏 E-mail: maharshimehisewatrust@gmail.com
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शान्ति की प्राप्ति | पूर्ण एकाग्रचित होने पर पूरी शान्ति | शान्ति को प्राप्त करो |
शुभ अशुभ कर्मो का बंधन | मन ही बंधन में डालता है और मन ही मुक्ति दिलाता है | आध्यात्मिक ज्ञान
All men must die | संसार का सुख कब तक |
इस जीवन के बाद और क्या होगा? | संसार का प्रबंध | जीवन में सुखी |
भगवान श्रीकृष्ण का महावाक्य | असत्य का अस्तित्व नहीं और सत्य का अभाव नहीं | आध्यात्मिक ज्ञान |
आशा से मत डोल रे | झूठ मुठ खेले सचमुच होय | आध्यात्मिक सत्संग ज्ञान |
रामचरितमानस | मनुष्य शरीर की विशेषता क्या है | इस शरीर रूपी नाव के नाविक कौन |
रामचरितमानस | नरतन में सुर दुर्लभता की क्या बात रही | आध्यात्मिक विचार
अब समझिए कि उस एक करोड़ के घोड़े की सेवा करने वाला भी मनुष्य ही होगा। कितने लोग भीख मांगते-फिरते हैं-- बाबू! एक पैसा दे दो। फिर नरतन में सुर-दुर्लभता की क्या बात रही? वास्तविक बात तो यह है कि एक करोड़ रुपए का घोड़ा हो या पचहत्तर हजार का कुत्ता, भगवद्-भजन करके भवसागर से छूट नहीं सकता, किंतु भीख मांगने वाला ही क्यों न हो, यदि उसे क्रिया बतला दी जाए, तो साधना करके वह त्रय तापों से, भवसागर के आवागमन से छूट सकता है।
नरतन में सुर दुर्लभता की क्या बात रही | भाग-2
रामचरितमानस | श्रवण-मनन | ज्ञान | संभ्रांत परिवार के लोग आपस में किस तरह व्यवहार करते हैं!
बहुत समय पड़ा है, यही वहम सबसे बड़ा है |
"बहुत समय पड़ा है, यही वहम सबसे बड़ा है।" यह ईश्वर भक्ति के लिए है। क्योंकि आत्मा का जीवन अनन्त है। इस शरीर की आयु कु...
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दीपक लै कुएँ पड़े | मन ही बंधन में डालता है और मन ही मुक्ति दिलाता है। शुभ अशुभ कर्मों का बंधन मन जानता है कि बुरे कर्म का फल ब...
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साधक स्थूल के केन्द्र पर शब्द को पकड़ता है, उससे खिंचकर सूक्ष्म के केन्द्र पर जाता है। वहाँ केन्द्रीय शब्द को पकड़कर कारण, महाकारण के केन्द्...
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हमारे गुरुदेव कहा करते थे- झूठ मुठ खेलै सचमुच होय। "झूठ मुठ खेले सचमुच होय। सचमुच खेलै बिरला कोय।। जो कोई खेलै मन चित लाय। ...