"बहुत समय पड़ा है, यही वहम सबसे बड़ा है।"
यह ईश्वर भक्ति के लिए है।
क्योंकि आत्मा का जीवन अनन्त है। इस शरीर की आयु कुछेक वर्ष ही है।
भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर में ही रहकर हो सकती है। अन्य किसी शरीर में नहीं।
जीवात्मा परमात्मा का ही अंश है, इसे परमात्मा में मिलाने का एकमात्र रास्ता ईश्वर भक्ति है जो मनुष्य शरीर से ही होगा। अभी हमसब मनुष्य शरीर में हैं इस कार्य को कर लेना परमावश्यक है। नहीं करने से बड़ा भारी नुकसान है चौरासी लाख योनियों की भटकन में जाना होगा। गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में कहा है-
"बड़े भाग मानुष तनु पावा, सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।"
बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर मिला है, समय रहते इसका सदुपयोग कर इस कार्य को कर लेना चाहिए।
सांसारिक कार्यो के लिए इंसान वैसे ही जी-तोड़ मेहनत करते ही रहता है और ज्यादातर सांसारिक कार्यो में ही लगा रहता है। संसार में आप अपना कर्म कर सकते हैं फल आपके पूर्व जन्मकृत कर्म पर निर्भर करता है, अतः वर्तमान में अपना कर्म करें फल ईश्वर पर छोड़ें। अगर इंसान का पूर्व कर्म कृत फल अच्छा है और वर्तमान सत-पथ है तो भविष्य भी अच्छा ही होगा। इसलिए अच्छा करें, अच्छे की आशा रखें, भविष्य सोच कर वर्तमान न बिगाडें। सिर्फ सांसारिक जीवन के लिए न सोचें इसके बाद का जीवन बहुत बड़ा है और उसको करने यही मौका है। जय श्रीराम! जय श्रीकृष्णा!🙏🙏