"जफर उनको न आदमी कहिएगा,
चाहे वह कितना ही शाहेफमौज का हो।
जिसको ऐश में यादे खुदा नहीं,
और तैश में खौफे खुदा नहीं।।"
वह आदमी नहीं, जिसमें आदमियत नहीं। आदमी
का शरीर मिला हुआ रूप है, लेकिन आदमियत
नहीं है, तो वह किस काम का हुआ! मनुष्य बन गए
तो मनुष्यता होनी चाहिए, मानवोचित कर्तव्य होना
चाहिए, सार-असार का ज्ञान होना चाहिए, सत्य-असत्य
का विवेक होना चाहिए, तदनुकूल हमारा आचरण होना चाहिए।
"भूले मन को समझाय लीजिए,
सत्संग के बीच में आय के जी।
अबकी बार नहीं चूकना, मानुष तन पाय के जी।।"
इस भूले-भटके मन को सत्संग में आकर समझाइए,
बुझाइए। अगर सत्संग में आकर के भी अपना
सुधार नहीं कर सके, तो कबीर साहब ने कहा-
'सत्संगति सुधारा नहीं ताका बड़ा अभाग।'
सत्संग की बातों को सुन करके जब कोई अपने को
सुधरेगा, तो कभी-न-कभी उसका उद्धार अवश्य होगा।