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वह आदमी नहीं, जिसमें आदमियत नहीं |

"जफर उनको न आदमी कहिएगा,
चाहे वह कितना ही शाहेफमौज का हो।

जिसको ऐश में यादे खुदा नहीं, 
और तैश में खौफे खुदा नहीं।।"
वह आदमी नहीं, जिसमें आदमियत नहीं। आदमी

 का शरीर मिला हुआ रूप है, लेकिन आदमियत

 नहीं है, तो वह किस काम का हुआ! मनुष्य बन गए

 तो मनुष्यता होनी चाहिए, मानवोचित कर्तव्य होना

 चाहिए, सार-असार का ज्ञान होना चाहिए, सत्य-असत्य 

का विवेक होना चाहिए, तदनुकूल हमारा आचरण होना चाहिए।

"भूले मन को समझाय लीजिए,

सत्संग के बीच में आय के जी।

अबकी बार नहीं चूकना, मानुष तन पाय के जी।।"

इस भूले-भटके मन को सत्संग में आकर समझाइए,

 बुझाइए। अगर सत्संग में आकर के भी अपना

 सुधार नहीं कर सके, तो कबीर साहब ने कहा- 

'सत्संगति सुधारा नहीं ताका बड़ा अभाग।' 

सत्संग की बातों को सुन करके जब कोई अपने को

 सुधरेगा, तो कभी-न-कभी उसका उद्धार अवश्य होगा। 

जो रोगी के मन भावै, सो वैदा फरमावै | संतसेवी जी महाराज | संतमत-सत्संग |


🙏🌹ॐ श्री सद्गुरवे नमः🌹🙏
"सचिव बैद गुरु तिनि जौं, प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर, होइ बेगहि नास।।" 
'जो रोगी के मन भावै, सो वैदा फरमावै।'  
इस युक्ति के अनुसार जो गुरु चेले की हाँ में हाँ मिलाता है, वह सच्चा गुरु नहीं है और उस गुरु से चेले का उपकार या उद्धार नहीं हो सकता। मंत्री राजा को उचित सलाह देने वाले होते हैं। अगर मंत्री उचित परामर्श नहीं दें, तो वह राज्य टिकता नहीं है। राजा ने जैसा कह दिया, मंत्री ने हाँ-में-हाँ मिला दिया, यह उचित नहीं  मंत्री वे होते हैं, जो मंत्रणा करते हैं, सोचते-विचारते हैं और यथार्थ विचार देते हैं। रोगी जो खाने के लिए माँगे और वह भोजन पथ्यानुकूल नहीं हो, फिर भी खाने के लिए यदि वैद्य वह भोजन उसको दे दे, तो रोग बढ़ेगा और रोगी मरेगा। गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि सचिव हों, वैद्य हों या गुरुदेव हों; अगर भय के कारण या कुछ पाने की आशा से उचित बात नहीं कहते हैं, तो न वह राज्य रहेगा, न वह धर्म रहेगा और न वह रोगी व्यक्ति रहेगा। -महर्षि संतसेवी-प्रवचन पीयूष 
(प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम)
🙏🌹🌾 जय गुरु 🌾🌹🙏

बहुत समय पड़ा है, यही वहम सबसे बड़ा है |

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